“(श्री विष्णु चालीसा) Shree Vishnu Chalisa Lyrics in Hindi” डाउनलोड करें और अपनी दैनिक प्रार्थना व आध्यात्मिक शांति के लिए उपयोग करें।
विषयसूची
भगवान विष्णु – सृष्टि के पालनहार
विष्णु हिंदू पौराणिक कथाओं में त्रिदेवों में से एक हैं, जो सृष्टि के पालनहार और संरक्षक माने जाते हैं। उन्हें “नारायण” और “हरि” के नाम से भी जाना जाता है। विष्णु शांति, करुणा और धर्म के प्रतीक हैं।
वे शेषनाग पर विराजमान होते हैं और उनके चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल सुशोभित होते हैं, जो उनकी शक्ति और दिव्यता को दर्शाते हैं। विष्णु का निवास वैकुंठ लोक तथा वाहन गरुड़ माना जाता है। इनकी पत्नी देवी लक्ष्मी हैं, जो समृद्धि की प्रतीक हैं।
विष्णु ने धरती पर धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश के लिए कई अवतार लिए, जिनमें राम, कृष्ण, नरसिंह और वामन प्रमुख हैं। उनके दस प्रमुख अवतारों को “दशावतार” कहा जाता है। विष्णु की पूजा विशेष रूप से वैष्णव परंपरा में की जाती है। उनके भक्त उन्हें संकटमोचन और मोक्षदाता मानते हैं। विष्णु की कृपा से भक्तों को सुख, शांति और मुक्ति की प्राप्ति होती है। भक्तों को जीवन में स्थिरता, नैतिकता और मोक्ष की प्राप्ति होती है। उनकी महिमा वेदों, पुराणों और भागवत गीता में विस्तार से वर्णित है।
विष्णु की भक्ति मनुष्य को अज्ञानता से मुक्ति दिलाती है और उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। भक्त इनकी पूजा भगवद् गीता के ज्ञान, मंत्र जाप, एवं व्रत (जैसे एकादशी) के माध्यम से करते हैं। तिरुपति, बद्रीनाथ जैसे प्रसिद्ध मंदिर इनकी आराधना के केंद्र हैं।
श्री विष्णु चालीसा || Shree Vishnu Chalisa Lyrics in Hindi
दोहा
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥
चौपाई
नमो विष्णु भगवान खरारी।
कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥१॥
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी।
त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥२॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत।
सरल स्वभाव मोहनी मूरत ॥३॥
तन पर पीताम्बर अति सोहत।
बैजन्ती माला मन मोहत ॥४॥
शंख चक्र कर गदा विराजे।
देखत दैत्य असुर दल भाजे ॥५॥
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे।
काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥६॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन।
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ॥७॥
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन।
दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥८॥
पाप काट भव सिन्धु उतारण।
कष्ट नाशकर भक्त उबारण ॥९॥
करत अनेक रूप प्रभु धारण।
केवल आप भक्ति के कारण ॥१०॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा।
तब तुम रूप राम का धारा ॥११॥
भार उतार असुर दल मारा।
रावण आदिक को संहारा ॥१२॥
आप वाराह रूप बनाया।
हिरण्याक्ष को मार गिराया ॥१३॥
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया।
चौदह रतनन को निकलाया ॥१४॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया।
रूप मोहनी आप दिखाया ॥१५॥
देवन को अमृत पान कराया।
असुरन को छवि से बहलाया ॥१६॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया।
मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ॥१७॥
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।
भस्मासुर को रूप दिखाया ॥१८॥
वेदन को जब असुर डुबाया।
कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ॥१९॥
मोहित बनकर खलहि नचाया।
उसही कर से भस्म कराया ॥२०॥
असुर जलन्धर अति बलदाई।
शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ॥२१॥
हार पार शिव सकल बनाई।
कीन सती से छल खल जाई ॥२२॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी।
बतलाई सब विपत कहानी ॥२३॥
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।
वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥२४॥
देखत तीन दनुज शैतानी।
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ॥२५॥
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी।
हना असुर उर शिव शैतानी ॥२६॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे।
हिरणाकुश आदिक खल मारे ॥२७॥
गणिका और अजामिल तारे।
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥२८॥
हरहु सकल संताप हमारे।
कृपा करहु हरि सिरजन हारे ॥२९॥
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे।
दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥३०॥
चाहता आपका सेवक दर्शन।
करहु दया अपनी मधुसूदन ॥३१॥
जानूं नहीं योग्य जब पूजन।
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥३२॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण।
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ॥३३॥
करहुं आपका किस विधि पूजन।
कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥३४॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण।
कौन भांति मैं करहु समर्पण ॥३५॥
सुर मुनि करत सदा सेवकाई।
हर्षित रहत परम गति पाई ॥३६॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई।
निज जन जान लेव अपनाई ॥३७॥
पाप दोष संताप नशाओ।
भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥३८॥
सुत सम्पति दे सुख उपजाओ।
निज चरनन का दास बनाओ ॥३९॥
निगम सदा ये विनय सुनावै।
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥४०॥