श्री विंध्यवासिनी चालीसा || Shree Vindhyavasini Chalisa Lyrics in Hindi

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विंध्यवासिनी देवी

विंध्यवासिनी देवी, जिन्हें “विंध्येश्वरी” के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख देवी हैं। उन्हें दुर्गा का अवतार माना जाता है और वे विंध्य पर्वत श्रृंखला की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनका नाम “विंध्यवासिनी” इसलिए पड़ा क्योंकि वे विंध्य क्षेत्र में निवास करती हैं। देवी विंध्यवासिनी को शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। उनकी पूजा विशेष रूप से उत्तर भारत में की जाती है, और उनका प्रसिद्ध मंदिर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी विंध्यवासिनी ने अनेक राक्षसों का वध करके धर्म की रक्षा की। उन्हें नवदुर्गा में से एक माना जाता है और नवरात्रि के समय उनकी विशेष पूजा की जाती है। देवी की कृपा से भक्तों को साहस, शक्ति और संकटों से मुक्ति मिलती है। उनकी आराधना करने वाले भक्तों का मानना है कि वे सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उनकी कृपा से जीवन में सुख-शांति आती है। विंध्येश्वरी देवी की महिमा अनेक धार्मिक ग्रंथों और स्तोत्रों में वर्णित है।

दोहा

नमो नमो विन्ध्येश्वरी नमो नमो जगदंबे ।
संतजनो के काज में मां करती नहीं विलंभ ॥

चौपाई

जय जय जय विन्ध्याचल रानी ।
आदि शक्ति जग विदित भवानी ॥१॥

सिंहवाहिनी जै जग माता ।
जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता ॥२॥

कष्ट निवारिनी जय जग देवी ।
जय जय जय जय असुरासुर सेवी ॥३॥

महिमा अमित अपार तुम्हारी ।
शेष सहस मुख वर्णत हारी ॥४॥

दीनन के दुःख हरत भवानी ।
नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी ॥५॥

सब कर मनसा पुरवत माता ।
महिमा अमित जगत विख्याता ॥६॥

जो जन ध्यान तुम्हारो लावै ।
सो तुरतहि वांछित फल पावै ॥७॥

तू ही वैष्णवी तू ही रुद्राणी ।
तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी ॥८॥

रमा राधिका शामा काली ।
तू ही मात सन्तन प्रतिपाली ॥९॥

उमा माधवी चण्डी ज्वाला ।
बेगि मोहि पर होहु दयाला ॥१०॥

तू ही हिंगलाज महारानी ।
तू ही शीतला अरु विज्ञानी ॥११॥

दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता ।
तू ही लक्श्मी जग सुखदाता ॥१२॥

तू ही जान्हवी अरु उत्रानी ।
हेमावती अम्बे निर्वानी ॥१३॥

अष्टभुजी वाराहिनी देवी ।
करत विष्णु शिव जाकर सेवी ॥१४॥

चोंसट्ठी देवी कल्यानी ।
गौरी मंगला सब गुण खानी ॥१५॥

पाटन मुम्बा दन्त कुमारी ।
भद्रकाली सुन विनय हमारी ॥१६॥

वज्रधारिणी शोक नाशिनी ।
आयु रक्शिणी विन्ध्यवासिनी ॥१७॥

जया और विजया बैताली ।
मातु सुगन्धा अरु विकराली ।|१८॥

नाम अनन्त तुम्हार भवानी ।
बरनैं किमि मानुष अज्ञानी ॥१९॥

जा पर कृपा मातु तव होई ।
तो वह करै चहै मन जोई ॥२०॥

कृपा करहु मो पर महारानी ।
सिद्धि करिय अम्बे मम बानी ॥२१॥

जो नर धरै मातु कर ध्याना ।
ताकर सदा होय कल्याना ॥२२॥

विपत्ति ताहि सपनेहु नहिं आवै ।
जो देवी कर जाप करावै ॥२३॥

जो नर कहं ऋण होय अपारा ।
सो नर पाठ करै शत बारा ॥२४॥

निश्चय ऋण मोचन होई जाई ।
जो नर पाठ करै मन लाई ॥२५॥

अस्तुति जो नर पढ़े पढ़ावे ।
या जग में सो बहु सुख पावै ॥२६॥

जाको व्याधि सतावै भाई ।
जाप करत सब दूरि पराई ॥२७॥

जो नर अति बन्दी महं होई ।
बार हजार पाठ कर सोई ॥२८॥

निश्चय बन्दी ते छुटि जाई ।
सत्य बचन मम मानहु भाई ॥२९॥

जा पर जो कछु संकट होई ।
निश्चय देबिहि सुमिरै सोई ॥३०॥

जो नर पुत्र होय नहिं भाई ।
सो नर या विधि करे उपाई ॥३१॥

पांच वर्ष सो पाठ करावै ।
नौरातर में विप्र जिमावै ॥३२॥

निश्चय होय प्रसन्न भवानी ।
पुत्र देहि ताकहं गुण खानी ॥३३॥

ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै ।
विधि समेत पूजन करवावै ॥३४॥

नित प्रति पाठ करै मन लाई ।
प्रेम सहित नहिं आन उपाई ॥३५॥

यह श्री विन्ध्याचल चालीसा ।
रंक पढ़त होवे अवनीसा ॥३६॥

यह जनि अचरज मानहु भाई ।
कृपा दृष्टि तापर होई जाई ॥३७॥

जय जय जय जगमातु भवानी ।
कृपा करहु मो पर जन जानी ॥३८॥

॥ इति श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा ॥

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