श्री सरस्वती चालीसा || Shree Saraswati Chalisa Lyrics in Hindi

Shree Saraswati Chalisa Lyrics in Hindi

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माँ सरस्वती: ज्ञान की देवी

माँ सरस्वती को विद्या, बुद्धि, संगीत और कलाओं की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। वे ब्रह्मा की शक्ति और संगिनी हैं तथा त्रिदेवियों (सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती) में प्रमुख स्थान रखती हैं। उनका स्वरूप श्वेत वस्त्र, वीणा, पुस्तक और कमल से सुशोभित है, जो पवित्रता, ज्ञान और सृजनात्मकता का प्रतीक है। सरस्वती का वाहन हंस है, जो सत्य-असत्य का विवेक दर्शाता है।

ऋग्वेद में उन्हें “सरस्वती नदी” के रूप में वर्णित किया गया, जो जीवनदायिनी शक्ति और शुद्धता का प्रतीक है। पुराणों के अनुसार, उनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से हुई और उन्होंने सृष्टि को व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वसंत पंचमी पर उनकी पूजा की जाती है, जहाँ विद्यार्थी और कलाकार उनसे प्रतिभा और सफलता की कामना करते हैं।

माँ सरस्वती को वाग्देवी, भारती और शारदा जैसे नामों से भी जाना जाता है। उनकी उपासना अज्ञानता को दूर कर आत्मज्ञान और सद्भावना प्रदान करती है। उनका आशीर्वाद मनुष्य को भौतिक लालसा से मुक्त कर आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता है।

दोहा

जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥

पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥

चौपाई

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥१॥

जय जय जय वीणाकर धारी।
करती सदा सुहंस सवारी॥२॥

रूप चतुर्भुजधारी माता।
सकल विश्व अंदर विख्याता॥३॥

जग में पाप बुद्धि जब होती।
जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥४॥

तबहि मातु ले निज अवतारा।
पाप हीन करती महि तारा॥५॥

वाल्मीकिजी थे हत्यारा।
तव प्रसाद जानै संसारा॥६॥

रामायण जो रचे बनाई।
आदि कवी की पदवी पाई॥७॥

कालिदास जो भये विख्याता।
तेरी कृपा दृष्टि से माता॥८॥

तुलसी सूर आदि विद्धाना।
भये और जो ज्ञानी नाना॥९॥

तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा।
केवल कृपा आपकी अम्बा॥१०॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी।
दुखित दीन निज दासहि जानी॥११॥

पुत्र करै अपराध बहुता।
तेहि न धरइ चित्त सुंदर माता॥१२॥

राखु लाज जननी अब मेरी।
विनय करूं बहु भांति घनेरी॥१३॥

मैं अनाथ तेरी अवलंबा।
कृपा करउ जय जय जगदंबा॥१४॥

मधु कैटभ जो अति बलवाना।
बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥१५॥

समर हजार पांच में घोरा।
फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥१६॥

मातु सहाय भई तेहि काला।
बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥१७॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।
पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥१८॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता।
छण महुं संहारेउ तेहि माता॥१९॥

रक्तबीज से समरथ पापी।
सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥२०॥

काटेउ सिर जिम कदली खम्बा।
बार बार बिनवउं जगदंबा॥२१॥

जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा।
छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥२२॥

भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई।
रामचन्द्र बनवास कराई॥२३॥

एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा।
सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥२४॥

को समरथ तव यश गुन गाना।
निगम अनादि अनंत बखाना॥२५॥

विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी।
जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥२६॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी।
नाम अपार है दानव भक्षी॥२७॥

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥२८॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता।
कृपा करहु जब जब सुखदाता॥२९॥

नृप कोपित जो मारन चाहै।
कानन में घेरे मृग नाहै॥३०॥

सागर मध्य पोत के भंगे।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥३१॥

भूत प्रेत बाधा या दुःख में।
हो दरिद्र अथवा संकट में॥३२॥

नाम जपे मंगल सब होई।
संशय इसमें करइ न कोई॥३३॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई।
सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥३४॥

करै पाठ नित यह चालीसा।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥३५॥

धूपादिक नैवेद्य चढावै।
संकट रहित अवश्य हो जावै॥३६॥

भक्ति मातु की करै हमेशा।
निकट न आवै ताहि कलेशा॥३७॥

बंदी पाठ करें शत बारा।
बंदी पाश दूर हो सारा॥३८॥

करहु कृपा भवमुक्ति भवानी।
मो कहं दास सदा निज जानी॥३९॥

दोहा

माता सूरज कांति तव, अंधकार मम रूप।
डूबन ते रक्षा करहु, परूं न मैं भव-कूप॥

बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि, सुनहु सरस्वति मातु।
अधम रामसागरहिं तुम,आश्रय देउ पुनातु॥

॥ इति श्री सरस्वती चालीसा ॥

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