श्री गायत्री चालीसा || Shree Gayatri Chalisa Lyrics in Hindi

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माँ गायत्री: हिन्दू धर्म में ज्ञान और वेदों की जननी

माँ गायत्री हिन्दू धर्म में वेदमाता के रूप में पूजित हैं, जिनसे चारों वेदों की उत्पत्ति मानी जाती है। इन्हें ब्रह्मा जी की पत्नी और सृष्टि की आद्यशक्ति कहा गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा ने यज्ञ पूर्ण करने के लिए सावित्री की अनुपस्थिति में गायत्री से विवाह किया, जिससे इन्हें देवमाता का दर्जा प्राप्त हुआ।

गायत्री का स्वरूप पाँच मुख और दस भुजाओं वाला है, जो पंचतत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) और दस दिशाओं का प्रतीक है। इनके हाथों में कमल, चक्र, त्रिशूल जैसे दिव्य अस्त्र-शस्त्र विद्यमान हैं, जो ज्ञान, शुद्धि, और संयम का संदेश देते हैं।

गायत्री मंत्र इनकी महिमा का केंद्र है, जिसे वेदों का सार और सभी मंत्रों का “राजा” माना जाता है। 24 अक्षरों वाले इस मंत्र का जप मनुष्य को आत्मज्ञान, पापमुक्ति, और मोक्ष की ओर प्रेरित करता है। गायत्री जयंती (ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी) पर इनकी विशेष पूजा होती है, जहाँ साधक ज्ञान और शांति की कामना करते हैं।

सार रूप में, माँ गायत्री ब्रह्मांडीय चेतना, नैतिक मूल्यों, और आध्यात्मिक प्रकाश का प्रतीक हैं, जो भक्तों को अज्ञान के अंधकार से मुक्ति दिलाती हैं।

दोहा

हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड ।
शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ॥

जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम ॥

चौपाई

भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥१॥

अक्षर चौबिस परम पुनीता ।
इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता ॥२॥

शाश्वत सतोगुणी सतरुपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥३॥

हंसारुढ़ सितम्बर धारी ।
स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी ॥४॥

पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥५॥

ध्यान धरत पुलकित हिय होई ।
सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ॥६॥

कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अदभुत माया ॥७॥

तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।
तरै सकल संकट सों सोई ॥८॥

सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥९॥

तुम्हरी महिमा पारन पावें ।
जो शारद शत मुख गुण गावें ॥१०॥

चार वेद की मातु पुनीता ।
तुम ब्रहमाणी गौरी सीता ॥११॥

महामंत्र जितने जग माहीं ।
कोऊ गायत्री सम नाहीं ॥१२॥

सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।
आलस पाप अविघा नासै ॥१३॥

सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।
काल रात्रि वरदा कल्यानी ॥१४॥

ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
तुम सों पावें सुरता तेते ॥१५॥

तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥१६॥

महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जै जै जै त्रिपदा भय हारी ॥१७॥

पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।
तुम सम अधिक न जग में आना ॥१८॥

तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा ॥१९॥

जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥२०॥

तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।
माता तुम सब ठौर समाई ॥२१॥

ग्रह नक्षत्र ब्रहमाण्ड घनेरे ।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥२२॥

सकलसृष्टि की प्राण विधाता ।
पालक पोषक नाशक त्राता ॥२३॥

मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तरे पतकी भारी ॥२४॥

जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई ॥२५॥

मंद बुद्घि ते बुधि बल पावें ।
रोगी रोग रहित है जावें ॥२६॥

दारिद मिटै कटै सब पीरा ।
नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥२७॥

गृह कलेश चित चिंता भारी ।
नासै गायत्री भय हारी ॥२८॥

संतिति हीन सुसंतति पावें ।
सुख संपत्ति युत मोद मनावें ॥२९॥

भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहिं आवें ॥३०॥

जो सधवा सुमिरें चित लाई ।
अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥३१॥

घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।
विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥३२॥

जयति जयति जगदम्ब भवानी ।
तुम सम और दयालु न दानी ॥३३॥

जो सदगुरु सों दीक्षा पावें ।
सो साधन को सफल बनावें ॥३४॥

सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी ।
लहैं मनोरथ गृही विरागी ॥३५॥

अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥३६॥

ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी ।
आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ॥३७॥

जो जो शरण तुम्हारी आवें ।
सो सो मन वांछित फल पावें ॥३८॥

बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ ।
धन वैभव यश तेज उछाऊ ॥३९॥

सकल बढ़ें उपजे सुख नाना ।
जो यह पाठ करै धरि ध्याना ॥४०॥

दोहा

यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोय ।
तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥

॥ इति श्री गायत्री चालीसा ॥

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