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विषयसूची
भगवान धन्वंतरि: हिंदू पौराणिकता के आयुर्वेद के जनक
भगवान धन्वंतरि हिंदू धर्म में आयुर्वेद और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं। इन्हें विष्णु का अवतार कहा गया है, जो समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इनकी चतुर्भुज मूर्ति में अमृत, शंख, चक्र और औषधियाँ दर्शाई जाती हैं, जो स्वास्थ्य, दीर्घायु और ज्ञान का प्रतीक हैं । धन्वंतरि ने आयुर्वेद के “त्रिदोष सिद्धांत” (वात, पित्त, कफ) को विस्तार से समझाया और मानवता को रोगमुक्त जीवन का मार्ग दिखाया । इन्होंने राजा दिवोदास के रूप में अवतार लेकर शल्य चिकित्सा सहित आयुर्वेद के आठ अंगों का प्रसार किया ।
धनतेरस के दिन इनके जन्मोत्सव को मनाया जाता है, जहाँ स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए इनकी पूजा की जाती है । केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में इनके मंदिर प्रसिद्ध हैं, जहाँ औषधीय प्रसाद चढ़ाया जाता है । आयुर्वेदिक चिकित्सक आज भी धन्वंतरि के सिद्धांतों को आधार मानते हैं, जो प्राकृतिक उपचार और शारीरिक संतुलन पर जोर देते हैं । यह विवरण पुराणों, मंदिरों के ऐतिहासिक विवरण और आयुर्वेदिक ग्रंथों पर आधारित है, जो इसकी प्रामाणिकता सुनिश्चित करता है।
श्री धन्वंतरि चालीसा || Dhanvantari Chalisa Lyrics in Hindi
दोहा
करूं वंदना गुरू चरण रज, ह्रदय राखी श्री राम।
मातृ पितृ चरण नमन करूं, प्रभु कीर्ति करूँ बखान॥
तव कीर्ति आदि अनंत है , विष्णुअवतार भिषक महान।
हृदय में आकर विराजिए, जय धन्वंतरि भगवान ॥
चौपाई
जय धनवंतरि जय रोगारी।
सुनलो प्रभु तुम अरज हमारी ॥१॥
तुम्हारी महिमा सब जन गावें।
सकल साधुजन हिय हरषावे ॥२॥
शाश्वत है आयुर्वेद विज्ञाना।
तुम्हरी कृपा से सब जग जाना ॥३॥
कथा अनोखी सुनी प्रकाशा।
वेदों में ज्यूँ लिखी ऋषि व्यासा ॥४॥
कुपित भयऊ तब ऋषि दुर्वासा।
दीन्हा सब देवन को श्रापा ॥५॥
श्री हीन भये सब तबहि।
दर दर भटके हुए दरिद्र हि ॥६॥
सकल मिलत गए ब्रह्मा लोका।
ब्रह्म विलोकत भये हुँ अशोका ॥७॥
परम पिता ने युक्ति विचारी।
सकल समीप गए त्रिपुरारी ॥८॥
उमापति संग सकल पधारे।
रमा पति के चरण पखारे ॥९॥
आपकी माया आप ही जाने।
सकल बद्धकर खड़े पयाने ॥१०॥
इक उपाय है आप हि बोले।
सकल औषध सिंधु में घोंले ॥११॥
क्षीर सिंधु में औषध डारी।
तनिक हंसे प्रभु लीला धारी ॥१२॥
मंदराचल की मथानी बनाई।
दानवो से अगुवाई कराई ॥१३॥
देव जनो को पीछे लगाया।
तल पृष्ठ को स्वयं हाथ लगाया ॥१४॥
मंथन हुआ भयंकर भारी।
तब जन्मे प्रभु लीलाधारी ॥१५॥
अंश अवतार तब आप ही लीन्हा।
धनवंतरि तेहि नामहि दीन्हा ॥१६॥
सौम्य चतुर्भुज रूप बनाया।
स्तवन सब देवों ने गाया ॥१७॥
अमृत कलश लिए एक भुजा।
आयुर्वेद औषध कर दूजा ॥१८॥
जन्म कथा है बड़ी निराली।
सिंधु में उपजे घृत ज्यों मथानी ॥१९॥
सकल देवन को दीन्ही कान्ति।
अमर वैभव से मिटी अशांति ॥२०॥
कल्पवृक्ष के आप है सहोदर।
जीव जंतु के आप है सहचर ॥२१॥
तुम्हरी कृपा से आरोग्य पावा।
सुदृढ़ वपु अरु ज्ञान बढ़ावा ॥२२॥
देव भिषक अश्विनी कुमारा।
स्तुति करत सब भिषक परिवारा ॥२३॥
धर्म अर्थ काम अरु मोक्षा।
आरोग्य है सर्वोत्तम शिक्षा ॥२४॥
तुम्हरी कृपा से धन्व राजा।
बना तपस्वी नर भू राजा ॥२५॥
तनय बन धन्व घर आये।
अब्ज रूप धनवंतरि कहलाये ॥२६॥
सकल ज्ञान कौशिक ऋषि पाये।
कौशिक पौत्र सुश्रुत कहलाये ॥२७॥
आठ अंग में किया विभाजन।
विविध रूप में गावें सज्जन ॥२८॥
अथर्व वेद से विग्रह कीन्हा।
आयुर्वेद नाम तेहि दीन्हा ॥२९॥
काय ,बाल, ग्रह, उर्ध्वांग चिकित्सा।
शल्य, जरा, दृष्ट्र, वाजी सा ॥३०॥
माधव निदान, चरक चिकित्सा।
कश्यप बाल , शल्य सुश्रुता ॥३१॥
जय अष्टांग जय चरक संहिता।
जय माधव जय सुश्रुत संहिता ॥३२॥
आप है सब रोगों के शत्रु।
उदर नेत्र मष्तिक अरु जत्रु ॥३३॥
सकल औषध में है व्यापी।
भिषक मित्र आतुर के साथी ॥३४॥
विश्वामित्र ब्रह्म ऋषि ज्ञान।
सकल औषध ज्ञान बखानि ॥३५॥
भारद्वाज ऋषि ने भी गाया।
सकल ज्ञान शिष्यों को सुनाया ॥३६॥
काय चिकित्सा बनी एक शाखा।
जग में फहरी शल्य पताका ॥३७॥
कौशिक कुल में जन्मा दासा।
भिषकवर नाम वेद प्रकाशा ॥३८॥
धन्वंतरि का लिखा चालीसा।
नित्य गावे होवे वाजी सा ॥३९॥
जो कोई इसको नित्य ध्यावे|
बल वैभव सम्पन्न तन पावें ॥४०॥
दोहा
रोग शोक सन्ताप हरण, अमृत कलश लिए हाथ।
जरा व्याधि मद लोभ मोह, हरण करो भिषक नाथ ॥