“(श्री विश्वकर्मा चालीसा) Shree Vishwakarma Chalisa Lyrics in Hindi” डाउनलोड करें और अपनी दैनिक प्रार्थना व आध्यात्मिक उन्नति के लिए उपयोग करें।
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भगवान विश्वकर्मा
हिंदू पौराणिक कथाओं में विश्वकर्मा को “दिव्य शिल्पी” एवं “ब्रह्मांड के सर्वश्रेष्ठ वास्तुकार” के रूप में पूजा जाता है। वेद, पुराण एवं महाकाव्यों में इन्हें देवताओं के महल, अस्त्र-शस्त्र (जैसे इंद्र का वज्र, श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र) और दिव्य यानों (जैसे पुष्पक विमान) का निर्माता बताया गया है। रामायण में लंका का निर्माण और महाभारत में द्वारका नगरी की रचना इनके अद्भुत कौशल का प्रमाण है। आज भी कारीगर, इंजीनियर और शिल्पकार विश्वकर्मा पूजा के माध्यम से इन्हें श्रद्धांजलि देते हैं, जो कला, तकनीक और मेहनत के प्रतीक माने जाते हैं। यह जानकारी प्रामाणिक ग्रंथों और सांस्कृतिक परंपराओं पर आधारित है।
श्री विश्वकर्मा चालीसा || Vishwakarma Chalisa Lyrics in Hindi
दोहा
श्री विश्वकर्म प्रभु वन्दऊं, चरणकमल धरिध्यान।
श्री, शुभ, बल अरु शिल्पगुण, दीजै दया निधान॥
चौपाई
जय श्री विश्वकर्म भगवाना।
जय विश्वेश्वर कृपा निधाना॥१॥
शिल्पाचार्य परम उपकारी।
भुवना-पुत्र नाम छविकारी॥२॥
अष्टमबसु प्रभास-सुत नागर।
शिल्पज्ञान जग कियउ उजागर॥३॥
अद्भुत सकल सृष्टि के कर्ता।
सत्य ज्ञान श्रुति जग हित धर्ता॥४॥
अतुल तेज तुम्हतो जग माहीं।
कोई विश्व मंह जानत नाही॥५॥
विश्व सृष्टि-कर्ता विश्वेशा।
अद्भुत वरण विराज सुवेशा॥६॥
एकानन पंचानन राजे।
द्विभुज चतुर्भुज दशभुज साजे॥७॥
चक्र सुदर्शन धारण कीन्हे।
वारि कमण्डल वर कर लीन्हे॥८॥
शिल्पशास्त्र अरु शंख अनूपा।
सोहत सूत्र माप अनुरूपा॥९॥
धनुष बाण अरु त्रिशूल सोहे।
नौवें हाथ कमल मन मोहे॥१०॥
दसवां हस्त बरद जग हेतु।
अति भव सिंधु मांहि वर सेतु॥११॥
सूरज तेज हरण तुम कियऊ।
अस्त्र शस्त्र जिससे निरमयऊ॥१२॥
चक्र शक्ति अरू त्रिशूल एका।
दण्ड पालकी शस्त्र अनेका॥१३॥
विष्णुहिं चक्र शूल शंकरहीं।
अजहिं शक्ति दण्ड यमराजहीं॥१४॥
इंद्रहिं वज्र व वरूणहिं पाशा।
तुम सबकी पूरण की आशा॥१५॥
भांति-भांति के अस्त्र रचाए।
सतपथ को प्रभु सदा बचाए॥१६॥
अमृत घट के तुम निर्माता।
साधु संत भक्तन सुर त्राता॥१७॥
लौह काष्ट ताम्र पाषाणा।
स्वर्ण शिल्प के परम सजाना॥१८॥
विद्युत अग्नि पवन भू वारी।
इनसे अद्भुत काज सवारी॥१९॥
खान-पान हित भाजन नाना।
भवन विभिषत विविध विधाना॥२०॥
विविध व्सत हित यत्रं अपारा।
विरचेहु तुम समस्त संसारा॥२१॥
द्रव्य सुगंधित सुमन अनेका।
विविध महा औषधि सविवेका॥२२॥
शंभु विरंचि विष्णु सुरपाला।
वरुण कुबेर अग्नि यमकाला॥२३॥
तुम्हरे ढिग सब मिलकर गयऊ।
करि प्रमाण पुनि अस्तुति ठयऊ॥२४॥
भे आतुर प्रभु लखि सुर-शोका।
कियउ काज सब भये अशोका॥२५॥
अद्भुत रचे यान मनहारी।
जल-थल-गगन मांहि-समचारी॥२६॥
शिव अरु विश्वकर्म प्रभु मांही।
विज्ञान कह अंतर नाही॥२७॥
बरनै कौन स्वरूप तुम्हारा।
सकल सृष्टि है तव विस्तारा॥२८॥
रचेत विश्व हित त्रिविध शरीरा।
तुम बिन हरै कौन भव हारी॥२९॥
मंगल-मूल भगत भय हारी।
शोक रहित त्रैलोक विहारी॥३०॥
चारो युग परताप तुम्हारा।
अहै प्रसिद्ध विश्व उजियारा॥३१॥
ऋद्धि सिद्धि के तुम वर दाता।
वर विज्ञान वेद के ज्ञाता॥३२॥
मनु मय त्वष्टा शिल्पी तक्षा।
सबकी नित करतें हैं रक्षा॥३३॥
प्रभु तुम सम कृपाल नहिं कोई।
विपदा हरै जगत मंह जोई॥३४॥
जै जै जै भौवन विश्वकर्मा।
करहु कृपा गुरुदेव सुधर्मा॥३५॥
इक सौ आठ जाप कर जोई।
छीजै विपत्ति महासुख होई॥३६॥
पढाहि जो विश्वकर्म-चालीसा।
होय सिद्ध साक्षी गौरीशा॥३७॥
विश्व विश्वकर्मा प्रभु मेरे।
हो प्रसन्न हम बालक तेरे॥३८॥
मैं हूं सदा उमापति चेरा।
सदा करो प्रभु मन मंह डेरा॥३९॥
दोहा
करहु कृपा शंकर सरिस, विश्वकर्मा शिवरूप।
श्री शुभदा रचना सहित, ह्रदय बसहु सूर भूप॥